दलित
महिला लिख रही है संविधान
संजय ढकाल
बीबीसी संवाददाता, नेपाल
मंगलवार, 10 अप्रैल, 2012 को 11:37 IST तक
के समाचार
कृष्णा कुमार पेरियार आज नेपाल में सांसद हैं
लेकिन दलित परिवार में पैदा होना उनके लिए मुश्किलों का सबब बना
पैंतालिस साल की कृष्णा
कुमारी परियार एक आम नेपाली महिला दिखती हैं. रंगीन साड़ी, सिंदूर से भरी मांग,
गले में लाल रंग की माला, हाथों में चूड़िया.. पहले इन हाथों में सिलाई मशीन घूमती
रहती थी अब इन उंगलियों ने नेपाल के संविधान लिखने की कलम थामी है .
Krishnakumari Pariyar |
नेपाल के सबसे ज़्यादा पिछड़े और दलित वर्ग में
पैदा हुई कृष्णा कुमारी परियार आज नेपाल में सांसद हैं और संविधान निर्माण में अहम
भूमिका निभा रही हैं.
इस जगह पहुंचने के लिए कृष्णा ने बहुत मुश्किल
सफ़र तय किया है.
कृष्णा ने बीबीसी को बताया, मैने बचपन से
भेदभाव झेला है. स्कूल में मेरे कुछ साथी कहते थे कि मैं अछूत हूं. पर इस व्यवहार
ने मुझे प्रेरित किया राजनीति में आने औऱ इस तरह की परंपराओं को उखाड़ फेंकने के
लिए. मैं उन्हे कहती थी मेरे औऱ तुम्हारे ख़ून में कोई फर्क नहीं है. मैं कभी
हतोत्साहित नहीं हुई.
कृष्णा कुमार पेरियार की ये राजनीतिक यात्रा
दरअसल दस साल की उम्र में ही शुरू हो गई जब वो अपने पिता के साथ राजनीतिक आंदोलनों
में हिस्सा लेने जाया करती थीं लेकिन राजनीति ने उनकी निजी ज़िंदगी पर ख़ासा असर
डाला.
कृष्णा के पति ने उनका साथ छोड़ दिया क्योंकि
पति की इच्छा थी कि कृष्णा राजनीति छोड़ दें.
राजनीतिक
समझ
"मैने
बचपन से भेदभाव झेला है. स्कूल में मेरे कुछ साथी कहते थे कि मैं अछूत हूं. पर इस
व्यवहार ने मुझे प्रेरित किया राजनीति में आने औऱ इस तरह की परंपराओं को उखाड़
फेंकने के लिए. मैं उन्हे कहती थी मेरे औऱ तुम्हारे ख़ून में कोई फर्क नहीं है. "
कृष्णा कुमारी परियार
एक दलित परिवार में पैदा होने के सच ने ज़िदगी
में जो अनुभव कराए, कृष्णा को अपने राजनैतिक जीवन में उससे फ़ायदा हुआ क्योंकि वो
अब बेहतर जानती थीं कि उन्हें क्या करना है.
नेपाली कांग्रेस की सांसद कृष्णा को चार साल
पहले पार्टी द्वारा संविधान लिखने के काम के लिए मनोनीत किया गया. वे उस दिन हर
जगह अखबार की सुर्खियों में थी. सिलाई मशीन के साथ उनकी तस्वीर हर जगह छपी पर अब
उनकी पहचान बदल गई है.
कृष्णा दलितों को मुख्य धारा में जोड़ने के बारे
में बहुत साफ़ तौर पर कहती हैं, मेरी समझ से सिर्फ़ कोटा निश्चित करने से कुछ
नहीं होगा. पिछड़ों औऱ दलितों को मुख्यधारा में शामिल करने और कोटा देने के लिए एक
ठोस नीति और आनुपातिक प्रतिनिधित्व की ज़रूरत है. ये दरअसल आर्थिक रूप से क़मज़ोर
लोगों को ही मिलना चाहिए. जिस दिन संविधान सभा नया संविधान बना लेगी वो मेरे लिए
बहुत ख़ुशी का दिन होगा. मैं समझूंगी मैने वो ज़िम्मेदारी पूरी की जो लोगों ने
मुझे सौंपी थी.
निजी
ज़िंदगी
राजनैतिक ख्वाबों को पूरा करने की दिशा में तो
कृष्णा कुमारी परियार आगे बढ़ रही हैं लेकिन निजी ज़िंदगी में जो ख़ालीपन है उसके
बारे में क्या सोचती हैं कृष्णा.
ख़ासकर तब जब उनके पति ने फिर एक होने की इच्छा
भी ज़ाहिर की है तो क्या कृष्णा इस बारे में सोचने के लिए तैयार हैं?
कृष्णा कुछ शिकायत भरे लहजे में कहती हैं,
"मैं सचमुच चाहती थी कि कोई उस वक्त मेरे साथ होता जब मेरे पति ने मुझे
छोड़ना का फ़ैसला किया. वो भी तब जब मुझे देर रात लौटने के बाद अपने बच्चों को
खाना खिलाना पड़ता था. उसने मुझे उस वक्त अकेले छोड़ दिया. अब मुझे उससे कुछ लेना
देना नहीं है.
कृष्णा अब भी सिंदूर लगाती जरूर है लेकिन उनके
लिए अब निजी जीवन के कथित सुख के आगे बड़ा उद्देश्य है- दलितों को नेपाल के
संविधान के ज़रिए समान अधिकार दिलाने की लंबी लड़ाई.
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